गणेश मानस पूजा
(३३.) झूलन/दोलन लीला-
हे बुद्धिप्रदाता गणेशजी! अब आप इन सुंदर चंदन की
बनी पादुकाओं को अपने कोमल चरणों में धारण कर लीजिए और गंगातट पर बने केले के सुंदर
उद्यान की ओर पधारिये । मैं ऋद्धि-सिद्धि माता हेतु भी अत्यंत रमणीय हीरे इत्यादि
रत्नों से सजी एवं स्वर्ण के बेल-बूटों के डिजाईन से सजी सुंदर पादुकाएँ पहनाता हूँ। मैं आप सभीके ऊपर छत्र से छाया करता हुआ और आपके पथ पर
पुष्प बिखेरता हुआ चल रहा हूँ।
मैं गणेशजी को गंगा के पावन तट पर उद्यान में ले
चलता हूँ। एक वृक्ष रंग-बिरंगे फूलों और फूलों
से लदा हुआ है। उसकी जड़ों में संगमरमर का सुंदर गोल चबूतरा है। चबूतरे के नीचे के फर्श
पर भी संगमरमर के चिकने प्रस्तर जड़े हुए हैं। फर्श के चारों ओर फूलों के सुंदर वृक्ष
हैं और पास में हरी-हरी सुंदर सुंदर फूलों की झाड़ियाँ हैं। चारों ओर हरी दूब घास उगी
हुई है। चबूतरे पर मुस्कुराते हुए गणेशजी के संग
ऋद्धि-सिद्धि बैठी हुईं हैं। वृक्ष से झूलतीं सुंदर लताएँ
प्रमुदित होकर उन तीनों पर पुष्पों की वर्षा कर रही हैं।
मैं गणेशजी और ऋद्धि-सिद्धि
माँ के चरण प्रक्षालन करता हूँ। कितना
धन्य है मिट्टी का यह
कलश, जिसके जल से प्रभु और माँ के चरण
धुलाए जा रहे हैं। मैं प्रभु को पुष्प
का मुकुट बनाकर पहनाता हूँ। मुकुट
में सुंदर कलंगी, मोरपंख एवं मोतियों की झालर लगी
हैं। प्रभु ने कानों
में कर्णिकार फूल खोंस लिए हैं, जो बड़े सुंदर लग रहे हैं।
उनकी करधनी में सुंदर घंटियाँ एवं पुष्पों
तथा मोतियों की झालर लटकी हुईं हैं।
माताएँ भी पुष्पाभूषण
पहने हुए हैं और जूड़े
से लटकती उनकी रंग-बिरंगी पारदर्शी
ओढ़नी हवा से हिलती हुईं सुंदर लग रही हैं। माताओं के शीश
पर चंद्रिका है, जिस पर मोतियों की झालर लटक रही
है। उनकी वेणी में रत्नावालियाँ
शोभायमान हैं। गणेश पत्नियाँ अपने बाएँ हाथ में पुष्प घुमा रहीं
हैं, जबकि दायाँ हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। गणेशजी ने अपना दायाँ पैर बाएँ पैर
के ऊपर रखा हुआ है। उनके दाएँ पैर के चरणचिह्न दिखाई दे रहे हैं। माताओं के भी
बाएँ चरण के चिह्न दिखाई दे रहे हैं और वे गणेशजी के चरणचिह्नों को निहार रही हैं।
सम्मुख सरोवर में नीले,
लाल एवं श्वेत रंग के कमलों पर भौंरे मधुर गुँजार कर रहे हैं। कमल के
पुष्पों के हरे-हरे चौड़े पत्ते हैं। पवन के झोंकों से उनकी डंडी
हिल रही है। कमल के पुष्पों के समीप ही अनेक उजले वर्ण के हंस,
सारस बैठे हुए मधुर स्वर कर रहे
हैं। गणेशजी
उन्हें देख प्रसन्न हो रहे हैं। वृक्ष की डालियों
पर तोते, मैना-कोयल, चिड़ियाँ मधुर स्वर कर रही हैं। गौएँ, हिरन, मोर गणेशजी के समीप आ गए हैं और उन्हें
एकटक निहार रहे हैं। गणेशजी मुस्कुराते हुए गौओं
और हिरणों को घास खिला रहे हैं। वे ऋद्धि-सिद्धि
के
संग मोरों को दाना चुगा रहे हैं और मोर उनके हाथों से दाने पाकर अपने पंख फैलाकर
नृत्य कर रहे हैं। गणेशजी तोतों को आम खिला रहे
हैं और उन्हें ‘सीताराम-सीताराम’ कहना
सिखा रहे हैं। तोते
‘सीताराम-सीताराम’ और ‘जय गणेश’ की मधुर ध्वनि कर सबका मन आकर्षित कर रहे हैं।
एक वृक्ष की हरी-भरी
डाल पर मैंने एक अत्यंत सुंदर झूला लटकाया है। झूले की रस्सियों में फूलों की सुंदर बेलें लिपटी हुई हैं। झूले में बैठने के स्थान पर सुंदर मखमल बिछी हुई है। मैंने पुष्पों के सुंदर आसन का निर्माण कर उसे झूले में बिछा दिया है। झूले के पास जल के फुहारे हैं, जिनमें से रंग-बिरंगा जल
अनेक मनमोहक आकृतियों में प्रवाहित हो रहा है।
झूले के पास ही भगवान् गौरीशंकर सीताराम और राधाकृष्ण की सुंदर मूर्तियाँ हैं। इसी उद्यान में गणेशजी अपने
छोटे भाई कार्तिकेय और सखाओं के संग बचपन में आँख-मिचौनी, गुल्ली-डंडा एवं अन्य
क्रीड़ाएँ
किया करते थे।
हे प्रभु! कृपया इस
झूले पर बैठकर कुछ क्षणों के लिए विश्राम कर लीजिए। श्रीगणेश मुस्कुराते हुए उस झूले
पर ऋद्धि-सिद्धि माता सहित आसीन हो गए हैं और मैंने तीनों के गले में रंग-बिरंगे पुष्पों
की मालाएँ पहना दी हैं। मैं झूले की डोर को हौले-हौले खींच रहा हूँ।
वृक्ष की टहनियाँ
मीठी हवा के झोंकों से झूम-झूमकर गणेशजी के ऊपर फूलों की वर्षा कर रही हैं। फूलों
से सजे गणेश अत्यंत सुंदर लग रहे हैं। कुछ पुष्प गंगा की कल-कल करती धारा में बह रहे हैं। अहो!
कितना सौभाग्यशाली है यह वृक्ष, जिस पर डले झूले में भगवान् झूल रहे
हैं और धन्य हैं ये पुष्प,
जो गणेशजी के चरणों का स्पर्श एवं रज प्राप्त कर रहे हैं।
वृक्ष की डाल-डाल में, पत्ते-पत्ते में, फुहारों की जलधाराओं में, रंग-बिरंगे
फूलों की पंखुड़ियों में, नीले आकाश में, बादलों में, गंगा मैया के कल-कल छल-छल की
मधुर झंकार करते अविरल बहते धवल जल में, पर्वतों की चोटियों पर बिखरी बर्फ में
नाचतीं सूर्य की रंग-बिरंगी किरणों में- हर स्थान पर आज मुस्कुराते हुए गणेशजी
की सुंदर छवि दिखलाई दे रही है।
हवा के झोंकों से गणेशजी
का पीतांबर, बाल, कुंडल और गले में पड़ी पुष्पमालाएँ हिल रही हैं। ऋद्धि-सिद्धि
माता के घुँघराले बाल,
वेणियों में लगे पुष्पों की लड़ियाँ, गले
में पड़ी पुष्पमालाएँ एवं साड़ी की चुनरी हवा में फर-फर उड़ती हुईं
मन को मोह रही हैं। वे दोनों झूला झूलते
गणेशजी पर दोनों ओर खड़ीं हुईं पुष्प
वर्षा कर रही हैं।
देवांगनाएँ रंग-बिरंगे
परिधानों में सजी हुईं आकाश में नृत्य कर रही हैं और गंधर्व स्वर्ण
एवं चाँदी के संगीत वाद्य बजाते हुए
मधुर गीतों का गान कर रहे हैं। सहसा आकाश में काले मेघ छा गए हैं और रिमझिम वर्षा
होने लगी है। कोयल, चिड़ियाँ एवं तोते मधुर बोली निकल रहे हैं और
मोर अपने सुंदर पंख फैलाकर मनोहारी नृत्य कर रहे हैं। गणेश सावन के महीने में रिमझिम वर्षा में झूला झूल रहे हैं। वर्षा
के पश्चात् आकाश में सप्तरंगी इंद्रधनुष निकल आया है, जिसे देखकर मोर हर्ष से नाच रहे
हैं और गणेशजी प्रमुदित हो रहे हैं।
मैं गणेशजी एवं ऋद्धि-सिद्धि के झूला झूलते
समय गिरे पुष्पों एवं मोतियों को अपने आँचल में भर रहा
हूँ। हे रामनामप्रिय श्रीगणेश! मैं संसार के समस्त कार्य
आपके दिव्य नामों का उच्चारण करते हुए एवं आपके सुंदर रूप एवं मधुर लीलाओं का स्मरण करते हुए संपन्न करूँ- कृपया मुझ पर अपनी ऐसी कृपा दृष्टि कीजिए।
Ganesh Manas Puja 33. Ganesha in garden & Swinging Ganesha