बुधवार, 17 दिसंबर 2014

गणेश मानस पूजा 

(४०.) शयन- 
हे परशुरामगर्वहर्ता गणेश! मैं मन ही मन आपके लिए गंगा के तट पर इस दुग्ध धवल कोमल शय्या को बिछा रहा हूँयह शय्या मंदार वृक्ष के कोमल तनों से बनी हुई हैमैंने इस शय्या पर सुंदर रेशमी वस्त्र बिछाया है और विभिन्न प्रकार के सुंदर एवं सुगंधित रंग-बिरंगे पुष्प बिछा दिए हैंहे कृपानिधान! शय्या पर रेशम के गुदगुदे तकिए भी रखे हैंआइये और इस सुंदर शय्या पर निद्रा लीजिए



त्रिपुरसुन्दरीपुत्र गणेशजी शयन करने से पूर्व शय्या पर बैठकर ऋद्धि-सिद्धि को अपने माता-पिता गौरीशंकर और अपने ईष्टदेव सीताराम तथा राधाकृष्ण की भक्तिपूर्ण कर्णप्रिय कथाएँ सुना रहे हैं। मैं भी इन अमृतमयी कथाओं को सुनते हुए अपने हाथों से गणेशजीके चरण दबा रहा हूँ। 


अब ऋद्धि-सिद्धि माँ अपने स्वामी गणेशजी के दोनों चरण दबा रही हैं और मैं इनको फूल-पत्तियों से बने सुगंधित पंखे को झलते हुए हवा कर रहा हूँ। पंखे की हवा के झोंकों से तीनों के बाल एवं वस्त्र हिल रहे हैं।


गणेशजी ऋद्धि-सिद्धि सहित गंगा के तट पर सितारों से जगमगाते आकाश के नीचे शयन कर रहे हैं। चंद्रमा अपनी चंद्रिका गंगा के जल में बिखेरते हुए सोते प्रभु के दर्शन कर प्रमुदित हो रहा है। हंस तैर रहे हैं, कमल अपनी पंखुड़ियाँ फैलाकर विकसित हो रहे हैं। मैं गणेशजी और ऋद्धि-सिद्धि माता के चारों ओर गणेश के सुंदर नामों का उच्चारण करते हुए प्रदक्षिणा कर रहा हूँ




Ganesh Manas Puja 40. Shayan (Shubhratri Ganesha)
गणेश मानस पूजा

(३९.) आरती
गणेशजी के हाथों में स्वर्ण के थाल में दीपक और कपूर प्रज्ज्वलित हो रहे हैं 


गणेशजी सपरिवार सीतारामजी की आरती कर रहे हैं। 



पार्वतीजी और ऋद्धि-सिद्धि मधुर स्वरमें आरती गा रही हैं। 



उसके पश्चात् श्रीगणेश सभी ऋषि-मुनि, गंधर्व-अप्सराओं को प्रसाद दे रहे हैं। 
  


Ganesh Manas Puja 39. Aarti by Ganesha 
गणेश मानस पूजा

(३८.) देव मंदिर –पूजा, सत्संग एवं ग्रंथ श्रवण, संकीर्तन- 
श्रीगणेश रथ से लौटकर अपने माता–पिता गौरीशंकर के चरणों में प्रणाम कर रहे हैं, और पूरे परिवार के संग मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं। वे सीताराम जी को प्रणाम कर रहे हैं और उन्हें पुष्पमालाएँ पहना रहे हैं। 


वहाँ बाल्मीकि के मुख से रामायण और व्यासजी के मुख से भागवत का श्रवण कर अपने नेत्रों से प्रेमाश्रु बहा रहे हैं। गणेशजी अपने ईष्टदेव के विरह में रुदन कर रहे हैं।



इसके पश्चात् संकीर्तन प्रारंभ हो गया है। शिवजी अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय के संग भगवान् के मधुर और पवित्र नामों का उच्चारण करते हुए धिमिक-धिमिक-धिम धिमिक-धिमिक-धिम नृत्य कर रहे हैं। 

गणेशजी के गले में हारमोनियम है और वे उसे बजाते हुए झूम रहे हैं। 



कार्तिकेयजी के हाथों में ढोलक है और वे मधुर ताल में उसका वादन कर रहे हैं। शिवजी के एक हाथ में त्रिशूल है, जिसमें नाग और रुद्राक्ष की मालाएँ झूल रही हैं और उनके दूसरे हाथ में डमरू है, जिसे वे डम-डम डम-डम बजा रहे हैं। 


ऋद्धि-सिद्धि अपनी सासू माँ पार्वती संग वीणा, मृदंग बजाते हुए भगवन्नाम के सुंदर गीत गा रही हैं। 




नारद, तुंबरू, ब्रह्मा, विष्णु, ऋषि-मुनि, गंधर्व-अप्सरा भी इस दृश्य को देखकर भावविभोर और रोमांचित हो रहे हैं और वे भी संकीर्तन में भाग लेने के लिए शिव-परिवार के पास चले आए हैं। 




Ganesh Manas Puja 38. Devotee Ganesha 
गणेश मानस पूजा

(३७.) सांयकाल भोजन- 
मैं गणेशजी के लिए मक्का, बाजरा, चना आदि की रोटियाँ, मूली, आलू, गोभी, पनीर, गाजर, कुटू आदि के चटपटे भरवां परांठे बना रहा हूँ ऋद्धि-सिद्धि और उनकी सखियाँ भी आटा मांडने, सब्जियाँ छीलने और काटने, पात्रों में परोसने के कार्य में मेरी सहायता कर रही हैं। हे प्रभु! अब आप इन स्वादिष्ट परांठों का चटनी, अचार, दही, सब्जियों के साथ आनंद लीजिए।

हे गजानन!  भोजन के अनन्तर इस अति स्वादिष्ट फलों की चटपटी चाट का आनंद लीजिए. जिसमें अंगूर, केले, आम, अमरुद, खजूर, जामुन, अनार, बेर, संतरा-मौसमी, शरीफा, तरबूज-खरबूजा-सेंद, खीरा-ककड़ी, लीची-अलुचे-लोआकाट, नाशपाती-नाक, आडू, शहतूत, शकरकंदी, पपीता, एवं नारियल इत्यादि पड़े हैं विभिन्न चटपटे मसाले डालकर मैंने आपके लिए यह चाट तैयार की है




Ganesh Manas Puja 37. Ganesha Dinner

गणेश मानस पूजा


(३६.) यज्ञ संध्या- 
गणेशजी यज्ञ करने के लिए यज्ञमंडप में पधार रहे हैं मैं यज्ञभूमि में रंग-बिरंगी रंगोलियों का निर्माण कर रहा हूँ, स्तंभों पर पुष्पमालाएँ लपेट रहा हूँ तथा रेत और गोबर से यज्ञकुंड का निर्माण कर रहा हूँ। 


मैं सामग्री में गोलाकस, छुआरा, तिल मिला रहा हूँ और अग्निकुंड में चंदन, आम की लकड़ी, कपूर रख रहा हूँ। यज्ञभूमि ब्राह्मणवटुकों द्वारा उच्चारित वेदमंत्रों के पावन गान से गुँजायमान हो रही है 




गणेशजी के बाएँ-दाएँ ऋद्धि-सिद्धि बैठी हुईं हैं और वे भी स्वाहा उच्चारण करते हुए पति संग आहुति दे रही हैं। ब्राह्मण दुर्गासप्तशती का पाठ कर रहे हैं, गणेशजी आहुति दे रहे हैं, जिसे देखकर दुर्गास्वरूपिणी माँ पार्वती अपने पति भगवान् भोलेनाथ की ओर देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं। 


यज्ञ के अंत में गणेशजी ऋद्धि-सिद्धि संग पूर्णाहुति का नारियल अग्निदेव को समर्पित कर रहे हैं। यज्ञ करने के पश्चात् गणेशजी संध्या वंदन कर रहे हैं और उसके पश्चात् भगवान् सीतारामजी के रूप का ध्यान एवं उनके नाम का माला पर जप कर रहे हैं। उन्हें जप, ध्यान में मग्न देखकर सीतारामजी को अपना ईष्टदेव मानने वाले गौरीशंकर और कार्तिकेय मन ही मन प्रसन्न हो रहे हैं।



Ganesh Manas Puja 36. Ganesha performing Yagya (Sacrifice) & Sandhya
गणेश मानस पूजा

(३५.) होली लीला एवं स्नान- 
हे षडाननभ्राता गणेशजी! आइये नौका विहार के पश्चात् पुनः गंगा तट पर स्थित उद्यान में चलें, जहाँ आपके भ्राता स्कन्द एवं आपके गण आपके संग होली खेलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गणेशजी मुस्कुराते हुए अपनी सूंड में रंग भर-भरकर अपने मित्रों और गणों के ऊपर रंग वर्षा कर रहे हैं। वे अपने दोनों हाथों से पिचकारी चला रहे हैं। तीसरे हाथ में गुलाल का पात्र है और चौथे हाथ से वे ऋद्धि-सिद्धि और मित्रों के मुख पर गुलाल मल रहे हैं। उड़ते हुए गुलाल से आकाश भी रंग-बिरंगा हो गया है। 


ऋद्धि-सिद्धि भी रंग-बिरंगा सुगंधित जल पिचकारियों में भर-भरकर गणेशजी पर फुहारें छोड़कर उन्हें भिगो रही हैं और हास्य-विनोद कर रही हैं। माँ पार्वती शंकरजी के लिए भाँग पीस रही हैं, लेकिन शंकरजी पीछे से आकर माँ भवानी के मुख पर गुलाल लगा रहे हैं। गणेशजी मुझे देखकर मुस्कुराते हुए गुलाल मलते हैं और फिर सहसा अपनी सूंड से उठाकर समीप के रंग से भरे कुंड में फैंक देते हैं और ठहाका मारकर हँस पड़ते हैं। 


अब गणेशजी बैठ गए हैं, सभी ऋषि-मुनि, देवता और भूतगण गणेशजी पर पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं। गणेशजी मुस्कुराते हुए चुपचाप बैठे हैं। अब भक्तजनों ने गणेशजी को रंग-बिरंगे पुष्पों से पूरी तरह ढ़क दिया है। शंकर-पार्वती, कार्तिकेय, ऋद्धि-सिद्धि भी मुस्कुराते हुए यह प्रेमलीला देख रही हैं। 


अब गणेशजी उन पुष्पों के मध्य से निकल आए हैं और बड़े प्यारे लग रहे हैं। गणेशजी के शरीर के स्पर्श से पावन उन पुष्पों को परस्पर एक-दूसरे पर वर्षाकर भक्तजन होली खेल रहे हैं। 

आइए श्रीगणेश! अब गंगा में सांय का स्नान करें। 

स्नान करने के पश्चात् इन सुंदर वस्त्रों एवं आभूषणों को धारण कर लीजिए। 






Ganesh Manas Puja 35. Ganesha celebrating Holi festival 
गणेश मानस पूजा

(३४.) नौकाविहार लीला- 
हे विघ्ननाशक गणेश! आइये! अब तनिक नौका विहार का आनंद लीजिए गणेश गंगा में खड़ी एक सुंदर नौका की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। गणेशजी के पीछे-पीछे ऋद्धि एवं सिद्धि भी सुंदर वस्त्राभूषण पहने अपनी नूपुरों से रुनझुन का मधुर शब्द गुँजायमान करती हुईं उनका अनुसरण कर रही हैं।


मैंने नौका को रंग-बिरंगे फूलों से सजा दिया है और बैठने के स्थान पर सुंदर मखमल बिछाई है। मैं चप्पू उठाता हूँ और नौका गंगा की धारा में धीरे-धीरे बहने लगती है।


नौका पर हंस के सुंदर डिजाईन हैं और गौरीशंकर की सुंदर मूर्ति विराजमान है। 


मूर्ति के आगे गणेशजी ने घी के अनेक दीपक प्रज्ज्वलित कर दिए हैं, जिनका प्रतिबिंब और प्रकाश गंगा के जल में पड़ता हुआ अत्यंत सुंदर लग रहा है। गणेशजी मूर्ति के सम्मुख वीणा बजाते हुए मधुर स्वर में गायन कर रहे हैं।

नौका में ऋद्धि एवं सिद्धि के संग बैठे हुए श्रीगणेश भगवान् अत्यंत ही सुंदर लग रहे हैं। ऋद्धि-सिद्धि गणेशजी को चँवर ढुला रही हैं और गणेशजी मुस्कुराते हुए अपने हाथों में कमल का पुष्प घुमा रहे हैं गंगा के तट पर स्थित वृक्ष नौका में बैठे गणेशजी के ऊपर पुष्पों की वृष्टि कर रहे हैं।


मैं गणेशजी की प्रशंसा में एक गीत गाने लगता हूँ, जो हवा में गूँजने लगा है। नौका विहार करते गणेशजी का सुंदर प्रतिबिंब गंगा के निर्मल जल में चमक रहा है। सुगंधित मलय-समीर बहने लगी है सारस, हंस, बत्तख आदि जलचर गणेशजी के दर्शनों हेतु लहरों से ऊपर आ गए हैं और उनके सौंदर्य का अपने नेत्रों से पान कर रहे हैं 


ऋद्धि-सिद्धि गंगा में खिले कमल के पुष्पों को तोड़कर उन्हें अपने पति श्रीगणेशजी के चरणों में अर्पित कर रही हैं और उन पुष्पों की मालाएँ बनाकर प्रेमपूर्वक गणेशजी के कंठ में पहना रही हैं 

नीले आकाशमंडल से देवगण नौका में ऋद्धि-सिद्धि सहित विराजमान गणेश पर पुष्पवर्षा कर रहे हैं। 



Ganesh Manas Puja 34. Ganesha Boat Riding 
गणेश मानस पूजा

(३३.)  झूलन/दोलन लीला- 
हे बुद्धिप्रदाता गणेशजी! अब आप इन सुंदर चंदन की बनी पादुकाओं को अपने कोमल चरणों में धारण कर लीजिए और गंगातट पर बने केले के सुंदर उद्यान की ओर पधारिये । मैं ऋद्धि-सिद्धि माता हेतु भी अत्यंत रमणीय हीरे इत्यादि रत्नों से सजी एवं स्वर्ण के बेल-बूटों के डिजाईन से सजी सुंदर पादुकाएँ पहनाता हूँ मैं आप सभीके ऊपर छत्र से छाया करता हुआ और आपके पथ पर पुष्प बिखेरता हुआ चल रहा हूँ।


मैं गणेशजी को गंगा के पावन तट पर उद्यान में ले चलता हूँ एक वृक्ष रंग-बिरंगे फूलों और फूलों से लदा हुआ है। उसकी जड़ों में संगमरमर का सुंदर गोल चबूतरा है। चबूतरे के नीचे के फर्श पर भी संगमरमर के चिकने प्रस्तर जड़े हुए हैं। फर्श के चारों ओर फूलों के सुंदर वृक्ष हैं और पास में हरी-हरी सुंदर सुंदर फूलों की झाड़ियाँ हैं। चारों ओर हरी दूब घास उगी हुई है। चबूतरे पर मुस्कुराते हुए गणेशजी के संग ऋद्धि-सिद्धि बैठी हुईं हैं। वृक्ष से झूलतीं सुंदर लताएँ प्रमुदित होकर उन तीनों पर पुष्पों की वर्षा कर रही हैं
मैं गणेशजी और ऋद्धि-सिद्धि माँ के चरण प्रक्षालन करता हूँ कितना धन्य है मिट्टी का यह कलश, जिसके जल से प्रभु और माँ के चरण धुलाए जा रहे हैं। मैं प्रभु को पुष्प का मुकुट बनाकर पहनाता हूँ मुकुट में सुंदर कलंगी, मोरपंख एवं मोतियों की झालर लगी हैं प्रभु ने कानों में कर्णिकार फूल खोंस लिए हैं, जो बड़े सुंदर लग रहे हैं उनकी करधनी में सुंदर घंटियाँ एवं पुष्पों तथा मोतियों की झालर लटकी हुईं हैं।


माताएँ भी पुष्पाभूषण पहने हुए हैं और जूड़े से लटकती उनकी रंग-बिरंगी पारदर्शी ओढ़नी हवा से हिलती हुईं सुंदर लग रही हैं माताओं के शीश पर चंद्रिका है, जिस पर मोतियों की झालर लटक रही है। उनकी वेणी में रत्नावालियाँ शोभायमान हैं। गणेश पत्नियाँ अपने बाएँ हाथ में पुष्प घुमा रहीं हैं, जबकि दायाँ हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। गणेशजी ने अपना दायाँ पैर बाएँ पैर के ऊपर रखा हुआ है। उनके दाएँ पैर के चरणचिह्न दिखाई दे रहे हैं। माताओं के भी बाएँ चरण के चिह्न दिखाई दे रहे हैं और वे गणेशजी के चरणचिह्नों को निहार रही हैं
सम्मुख सरोवर में नीले, लाल एवं श्वेत रंग के कमलों पर भौंरे मधुर गुँजार कर रहे हैं। कमल के पुष्पों के हरे-हरे चौड़े पत्ते हैं। पवन के झोंकों से उनकी डंडी हिल रही है। कमल के पुष्पों के समीप ही अनेक उजले वर्ण के हंस, सारस बैठे हुए मधुर स्वर कर रहे हैंगणेशजी उन्हें देख प्रसन्न हो रहे हैं। वृक्ष की डालियों पर तोते, मैना-कोयल, चिड़ियाँ मधुर स्वर कर रही हैं। गौएँ, हिरन, मोर गणेशजी के समीप आ गए हैं और उन्हें एकटक निहार रहे हैं गणेशजी मुस्कुराते हुए गौओं और हिरणों को घास खिला रहे हैं वे ऋद्धि-सिद्धि के संग मोरों को दाना चुगा रहे हैं और मोर उनके हाथों से दाने पाकर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे हैं गणेशजी तोतों को आम खिला रहे हैं और उन्हें ‘सीताराम-सीताराम कहना सिखा रहे हैं तोते ‘सीताराम-सीताराम’ और ‘जय गणेश’ की मधुर ध्वनि कर सबका मन आकर्षित कर रहे हैं

एक वृक्ष की हरी-भरी डाल पर मैंने एक अत्यंत सुंदर झूला लटकाया है झूले की रस्सियों में फूलों की सुंदर बेलें लिपटी हुई हैं झूले में बैठने के स्थान पर सुंदर मखमल बिछी हुई है मैंने पुष्पों के सुंदर आसन का निर्माण कर उसे झूले में बिछा दिया है झूले के पास जल के फुहारे हैं, जिनमें से रंग-बिरंगा जल अनेक मनमोहक आकृतियों में प्रवाहित हो रहा है 


झूले के पास ही भगवान् गौरीशंकर सीताराम और राधाकृष्ण की सुंदर मूर्तियाँ हैं। इसी उद्यान में गणेशजी अपने छोटे भाई कार्तिकेय और सखाओं के संग बचपन में आँख-मिचौनी, गुल्ली-डंडा एवं अन्य क्रीड़ाएँ किया करते थे


हे प्रभु! कृपया इस झूले पर बैठकर कुछ क्षणों के लिए विश्राम कर लीजिए। श्रीगणेश मुस्कुराते हुए उस झूले पर ऋद्धि-सिद्धि माता सहित आसीन हो गए हैं और मैंने तीनों के गले में रंग-बिरंगे पुष्पों की मालाएँ पहना दी हैं। मैं झूले की डोर को हौले-हौले खींच रहा हूँ। 

वृक्ष की टहनियाँ मीठी हवा के झोंकों से झूम-झूमकर गणेशजी के ऊपर फूलों की वर्षा कर रही हैं फूलों से सजे गणेश अत्यंत सुंदर लग रहे हैं कुछ पुष्प गंगा की कल-कल करती धारा में बह रहे हैं अहो! कितना सौभाग्यशाली है यह वृक्ष, जिस पर डले झूले में भगवान् झूल रहे हैं और धन्य हैं ये पुष्प, जो गणेशजी के चरणों का स्पर्श एवं रज प्राप्त कर रहे हैं। 

वृक्ष की डाल-डाल में, पत्ते-पत्ते में, फुहारों की जलधाराओं में, रंग-बिरंगे फूलों की पंखुड़ियों में, नीले आकाश में, बादलों में, गंगा मैया के कल-कल छल-छल की मधुर झंकार करते अविरल बहते धवल जल में, पर्वतों की चोटियों पर बिखरी बर्फ में नाचतीं सूर्य की रंग-बिरंगी किरणों में- हर स्थान पर आज मुस्कुराते हुए गणेशजी की सुंदर छवि दिखलाई दे रही है




हवा के झोंकों से गणेशजी का पीतांबर, बाल, कुंडल और गले में पड़ी पुष्पमालाएँ हिल रही हैं ऋद्धि-सिद्धि माता के घुँघराले बाल, वेणियों में लगे पुष्पों की लड़ियाँ, गले में पड़ी पुष्पमालाएँ एवं साड़ी की चुनरी हवा में फर-फर उड़ती हुईं मन को मोह रही हैं। वे दोनों झूला झूलते गणेशजी पर दोनों ओर खड़ीं हुईं पुष्प वर्षा कर रही हैं

देवांगनाएँ रंग-बिरंगे परिधानों में सजी हुईं आकाश में नृत्य कर रही हैं और गंधर्व स्वर्ण एवं चाँदी के संगीत वाद्य बजाते हुए मधुर गीतों का गान कर रहे हैं सहसा आकाश में काले मेघ छा गए हैं और रिमझिम वर्षा होने लगी है कोयल, चिड़ियाँ एवं तोते मधुर बोली निकल रहे हैं और मोर अपने सुंदर पंख फैलाकर मनोहारी नृत्य कर रहे हैं। गणेश सावन के महीने में रिमझिम वर्षा में झूला झूल रहे हैं वर्षा के पश्चात् आकाश में सप्तरंगी इंद्रधनुष निकल आया है, जिसे देखकर मोर हर्ष से नाच रहे हैं और गणेशजी प्रमुदित हो रहे हैं



मैं गणेशजी एवं ऋद्धि-सिद्धि के झूला झूलते समय गिरे पुष्पों एवं मोतियों को अपने आँचल में भर रहा हूँ हे रामनामप्रिय श्रीगणेश! मैं संसार के समस्त कार्य आपके दिव्य नामों का उच्चारण करते हुए एवं आपके सुंदर रूप एवं मधुर लीलाओं का स्मरण करते हुए संपन्न करूँ- कृपया मुझ पर अपनी ऐसी कृपा दृष्टि कीजिए




Ganesh Manas Puja 33. Ganesha in garden & Swinging Ganesha 

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