गणेश मानस पूजा
(३०.) नैवेद्य/भोजन-
हे उमानंदन! आइये अब भोजन कुंज में चलें। हे गणराज! आपके लिए अनेक प्रकार के क्षुधावर्धक टमाटर, गाजर इत्यादि के सूप इन स्वर्ण पात्रों में रखे हुए हैं, कृपया सर्वप्रथम इन्हें ग्रहण कीजिए। इस पात्र में भुना जीरा एवं नींबू युक्त जल रखा है।
हे उमानंदन! आइये अब भोजन कुंज में चलें। हे गणराज! आपके लिए अनेक प्रकार के क्षुधावर्धक टमाटर, गाजर इत्यादि के सूप इन स्वर्ण पात्रों में रखे हुए हैं, कृपया सर्वप्रथम इन्हें ग्रहण कीजिए। इस पात्र में भुना जीरा एवं नींबू युक्त जल रखा है।
मैंने ये षट रसों से युक्त एवं पाँच
प्रकार के भक्ष्य, भोज्य (दाल, रोटी, चावल आदि), लेह्य (अचार), चोष्य (आम) एवं पेय-
व्यंजन आपके लिए तैयार किए हैं। मैं गणेशजी
के लिए आलू, दाल, बथुआ आदि की पूरी-कचौड़ी बना रहा हूँ और दूध उबाल रहा हूँ।
इन हीरे जड़े स्वर्ण पात्रों में मैंने पूरी-कचौड़ी, भेल-पूरी, कढ़ी-चावल, छोले-चावल, राजमा-चावल, मसूर-चावल, बूरा-घी-चावल, मटर-पुलाव एवं विभिन्न प्रकार की स्वादिष्ट सब्जियाँ यथा- पालक बथुआ का साग, बेसन का साग, आलू-टमाटर, काशीफल, भिंडी, घिये की बूझी, कटहल, अरबी, मटर गोभी, बेसन के गट्टे इत्यादि अपने हाथों से बनाकर रखी हैं।
मैंने आपके लिए अनेक प्रकार की चटपटी धनिया-पोदीना-मिर्च आदि की चटनियाँ, आम, नींबू, आँवला, हींग, गाजर, कलौंदा, कमरख आदि के अचार, मूली-अदरक-नींबू-हरी मिर्च का लच्छा, गाजर-मूली-खीरा-टमाटर आदि का सलाद, बथुए-बूंदी-घिया-खीरे आदि का रायता, आलू-उड़द-कटहल आदि के पापड़ और कचरी भी बनाए हैं। इन पात्रों में घृत, दही, मक्खन, शर्करा आदि रखे हैं।
इन हीरे जड़े स्वर्ण पात्रों में मैंने पूरी-कचौड़ी, भेल-पूरी, कढ़ी-चावल, छोले-चावल, राजमा-चावल, मसूर-चावल, बूरा-घी-चावल, मटर-पुलाव एवं विभिन्न प्रकार की स्वादिष्ट सब्जियाँ यथा- पालक बथुआ का साग, बेसन का साग, आलू-टमाटर, काशीफल, भिंडी, घिये की बूझी, कटहल, अरबी, मटर गोभी, बेसन के गट्टे इत्यादि अपने हाथों से बनाकर रखी हैं।
मैंने आपके लिए अनेक प्रकार की चटपटी धनिया-पोदीना-मिर्च आदि की चटनियाँ, आम, नींबू, आँवला, हींग, गाजर, कलौंदा, कमरख आदि के अचार, मूली-अदरक-नींबू-हरी मिर्च का लच्छा, गाजर-मूली-खीरा-टमाटर आदि का सलाद, बथुए-बूंदी-घिया-खीरे आदि का रायता, आलू-उड़द-कटहल आदि के पापड़ और कचरी भी बनाए हैं। इन पात्रों में घृत, दही, मक्खन, शर्करा आदि रखे हैं।
हे पशुपतिनंदन श्रीगणेश! मैंने इस सुंदर
पात्र में यह मधुर गंगा जल रखा है। भोजन करते समय
बीच-बीच में इस जल का पान करते रहिएगा। भोजन करने के
पश्चात् आप इस सुगंधित जल से अपने हाथों और मुख का प्रक्षालन कर लीजिए।
आचमन करने के उपरांत कृपया इस जल का
पान कीजिए। इस जल में अनेक सुगंधित द्रव्य मिलाकर
मैंने आपके लिए तैयार किया है। हे विघ्नहंता!
इसके पश्चात् मैं इस स्वच्छ वस्त्र से आपके मुस्कुराते हुए मुख एवं हाथों को पोंछ दूँगा।
Ganesh Manas Puja 30. Ganesha having lunch
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