गणेश मानस पूजा
(१७.) रथयात्रा -
हे उमानंदन! आपका कलेवा समाप्त हो गया है, अब गंगा नदी के तट पर स्थित उद्यान के सभा मंडप में चलें। आइये! इन पीतांबर एवं कवच को अपने सुंदर शरीर पर धारण कर लीजिए, माता-पिता गौरीशंकर को प्रणाम कीजिए और फिर इस सुंदर रथ के पुष्पों के आसन पर ऋद्धि-सिद्धि माता के संग विराजित होइए।
हे उमानंदन! आपका कलेवा समाप्त हो गया है, अब गंगा नदी के तट पर स्थित उद्यान के सभा मंडप में चलें। आइये! इन पीतांबर एवं कवच को अपने सुंदर शरीर पर धारण कर लीजिए, माता-पिता गौरीशंकर को प्रणाम कीजिए और फिर इस सुंदर रथ के पुष्पों के आसन पर ऋद्धि-सिद्धि माता के संग विराजित होइए।
हे धूम्रकेतु! मणियों से जड़े इस रथ पर धूम्र के सदृश वर्ण वाली पताका फहरा रही है और इसमें पुष्पों, मोतियों की सुंदर झालरें लटक रही हैं। रथ को चार विशालकाय मूषक/घोड़े/हाथी खींच रहे हैं।
मैं सारथी के स्थान पर बैठा हुआ रथ को प्रमुदित मन से चला रहा हूँ। अनेक
भक्तजन पथ को स्वच्छ करते हुए, उस पर सुगंधित जल का छिड़काव करते हुए और पुष्प
बिछाते हुए आगे-आगे चल रहे हैं।
अनेक भक्त रथ के
आगे डांडिया नृत्य करते हुए मृदंग, ताली
बजाते हुए संकीर्तन करते हुए चल रहे हैं।
मयूर, चिड़ियाँ भी
रथयात्रा को देखकर नृत्य कर रहे हैं,
वृक्षों पर कोयलें मधुर स्वर में कूक रही हैं। माँ
पार्वती एवं पिता शंकर ऊपर कैलाश पर्वत से रथ
में बैठकर जाते अपने लाड़ले पुत्र गणेश
को देख-देखकर मुस्कुराते हुए पुलकित
हो रहे हैं।
पुष्पों से आच्छादित पथ के
दोनों ओर पर्वतशृंखलाएँ एवं हरे-हरे वृक्ष हैं। मैंने
कल ही गणेशजी के मन को प्रसन्न करने के लिए इस मार्ग में फूलों
वाले सुंदर पौधे लगाए हैं।
पथ के दोनों ओर खड़े भक्तजन ‘जय गणेश’, ‘जय गजानन’, ‘जय ऋद्धि-सिद्धि’ के मंगलमय उद्घोष करते हुए प्रभु के मंगल दर्शन कर रहे हैं और उनके ऊपर पुष्प वृष्टि कर रहे हैं।
कहीं-कहीं ऋषि-मुनियों की सुंदर पर्ण-कुटिया हैं। ऋषि-मुनि गणेशजी के दर्शन हेतु अपनी पत्नियों एवं बच्चों के संग अपनी-अपनी कुटियाओं से बाहर निकल आए हैं और गणेशजी को प्रणाम कर उनकी आरती कर रहे हैं।
हे गंगापुत्र गणेश! देखिए अब गंगा माँ आ गई हैं। कल-कल बहती गंगा की जलधारा कितनी सुहावनी लग रही है। आइये इनका पूजन करें! हवा के झोंकों से गंगा का धवल जल हिल रहा है, घाट रत्नों से जड़ा हुआ है और सूर्य की किरणों से जगमगा रहा है। घाट पर चार सीढ़ियाँ हैं और गणेशजी एक-एक करके उनसे उतर रहे हैं।
गणेशजी गंगा माँ की आरती उतार रहे हैं और उसमें दीपक एवं पुष्प तैरा रहे हैं।
अब ऋद्धि-सिद्धि माँ गंगा में दीपक तैरा रहीं हैं और गणेशजी मुस्कुराते हुए आम के वृक्ष की डाल पकड़े खड़े हुए उन्हें देख रहे हैं।
आइए! पुनः रथ पर चलें!
देखिए! अब उद्यान मंडप समीप आ गया है। गणेश अपनी रानियों सहित रथ से नीचे उतर रहे हैं।
देखिए! अब उद्यान मंडप समीप आ गया है। गणेश अपनी रानियों सहित रथ से नीचे उतर रहे हैं।
ऋद्धि-सिद्धि
उनके
चरण चिह्न निहारतीं उनके पीछे-पीछे चल रही हैं। उनकी पायल, चूड़ियों, कंकण, घुँघरू की ध्वनि का श्रवण कर
भक्तों का मन आह्लादित हो रहा है।
Ganesh Manas Puja 17. Ganesha Chariot Procession (Rathyatra)
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