मंगलवार, 2 दिसंबर 2014


गणेश मानस पूजा

(२.) आसन- 
हे शंकरसुवन श्रीगणेश! इस सुगंधित एवं मधुर जल से अपना मुख स्वच्छ कीजिए मैं एक सुंदर वस्त्र से आपका चंद्र समान मुख पोंछता हूँ आइए! अब इस देवसभा में चलकर उन्हें अपने दर्शन का सुख प्रदान कर कृतार्थ कीजिए

देखिए जगवंदन गणेश! समस्त देवता एवं गंधर्व अपनी पत्नियों सहित आपको प्रणाम कर रहे हैं ऋषिगण मधुर कर्णप्रिय स्वर में आपकी स्तुति कर रहे हैं इन पर अपनी मधुर मुस्कान से युक्त मुख से एक बार दृष्टिपात कर दीजिए 

इसके पश्चात् मेरे द्वारा मस्तिष्क में निर्मित इस सुंदर उद्यान के मंडप में प्रवेश कीजिए, जिसकी अनुपम शोभा निश्चय ही आपके चित्त को अत्यंत प्रसन्न करने वाली है

मैं अपने मस्तिष्क से भगवान् श्रीगणेश को एक अत्यंत सुंदर मंडप की ओर ले चलता हूँ, जो कि चारों ओर से अत्यंत रमणीय उद्यानों से घिरा हुआ है। मैंने मंडप को सुगंधित जल से धोया है और गौ के गोबर से लीपा है मंडप के पथ पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिछी हुईं हैं और उसके दोनों ओर फूलों की अनेक सुंदर झाड़ियाँ हैं, जिन पर भ्रमर गुँजार कर रहे हैं। चिड़ियाँ चहचहा रही हैं और रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों के रस का पान करने को इधर-उधर उड़ रही हैं। अनेक भव्य फौहारों से विभिन्न मनमोहक आकृतियों की जल धाराएँ प्रस्फुटित हो रही हैं।



श्रीगणेशजी ऋद्धि-सिद्धि संग मुस्कुराते हुए गुलाब के पथ पर अपने चरण रख रहे हैं। मैं उनके चरणों की रज को अपने माथे पर लगा लेता हूँ 

मंडप में सोने एवं मणियों से बने तीन सुंदर सिंहासन बिछे हुए हैं। सिंहासनों पर अत्यंत कोमल गुलाबी अष्टकमल अपनी पंखुड़ियाँ फैलाये सुशोभित हो रहे हैं हे पंकजरमणा! इस कमल पर ऋद्धि-सिद्धि संग मुस्कुराते हुए विराजमान होकर आप अत्यंत ही सुंदर प्रतीत हो रहे हैं कमल की सुगंध से आह्लादित होकर आप अपनी सूंड उठाकर अत्यंत प्रमुदित हो रहे हैं आपके मुखकमल के चारों ओर सूर्य की रक्तवर्णीम आभा अत्यंत प्रकाशित हो रही है और भक्तजनों के हृदय में आनंद का संचार कर रही है





Ganesh Manas Puja 2. Seat offering to Ganesha 

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