गणेश मानस पूजा
(११.) अंगराग-
हे विकट गणेश! आपको मन ही मन में इस समस्त आभूषणों को पहनाने के पश्चात् मैं आपके सुंदर वदन पर विभिन्न अंगरागों का लेपन कर रहा हूँ, जो कि मैंने विविध जड़ी-बूटियों को पीसकर उनके मिश्रण से तैयार किए हैं और इस स्वर्ण थाली में रखे हुए हैं।
हे विकट गणेश! आपको मन ही मन में इस समस्त आभूषणों को पहनाने के पश्चात् मैं आपके सुंदर वदन पर विभिन्न अंगरागों का लेपन कर रहा हूँ, जो कि मैंने विविध जड़ी-बूटियों को पीसकर उनके मिश्रण से तैयार किए हैं और इस स्वर्ण थाली में रखे हुए हैं।
हे धूम्रकेतु! इन मेरे द्वारा
मन ही मन भली-भाँति पिसे एवं मिलाए हुए चंदन, लाल चंदन, केसर, कुमकुम, हल्दी, अक्षत
एवं आठ जड़ी-बूटियों (अष्टगंध) से निर्मित अंगरागों को आप अपने संपूर्ण शरीर पर धारण
कीजिए।
अब मैं अपने मस्तिष्क की
कल्पनाओं द्वारा मैं आपके भाल पर लाल सूर्य की भी छवि के दर्शन कर रहा हूँ और घृत,
केसर एवं पिसे चावलों के लेप से सुंदर सूर्य का चिह्न बनाकर उस पर त्रिशूल का तिलक
लगा रहा हूँ। तत्पश्चात् मैं उस पर अक्षत कण लगा रहा हूँ।
मैं आपके सुंदर एवं लंबे नेत्रों में यह काजल लगा रहा हूँ। हे देव! मैं इन अंगरागों
से आपकी सूंड, वक्ष:स्थल एवं भुजा में सुंदर चित्रों का निर्माण करूँगा। मैं आपके हाथों ओर पैरों पर मेंहदी से सुंदर चित्रों की
रचना कर रहा हूँ। इसके पश्चात् मैं भगवान् के श्रीचरणों में कस्तूरी अथवा अन्य शीतल
तथा सुगंधित द्रव्य का लेप कर रहा हूँ।
सहसा मैं शीश उठाकर प्रभु के मुख की ओर दृष्टि डालता हूँ, तो
देखता हूँ कि वे मुझे प्रेम से देखते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। उनके अधरों पर
नाचती मीठी मुस्कान से मेरे हृदय में भी भक्ति, शांति एवं आनंद की लहरें प्रवाहित होने
लगी हैं।
हे कृष्णपिंगाक्ष गणेश! मेरे हाथ के इस स्वर्ण के शीशे में मुस्कुराते हुए तनिक अपनी सुंदर रूप-छवि तो निहारिए। हे दु:खियों के स्वामी और भक्तों के प्रिय! अपने भक्तों के
ऊपर दया कीजिए।
Ganesh Manas Puja 11. Cosmetics (Angraag) for Ganesha
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