मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

गणेश मानस पूजा

(१८.) सभा प्रवेश, सिंहासन एवं पुष्पांजलि- 
आइये! प्रभु! अब इस मंडप में चलें, जो कि पुष्पों की मीठी-मीठी सुगंध से महक रहा है। देखिए गणेश! द्वारों पर कितने सुंदर रंग-बिरंगे तोरण एवं केले के वृक्षों के तने लगाये गए हैं। स्वास्तिक, नारियल, पान एवं आम के पत्तों से सुसज्जित मंगल कलश विभिन्न स्थानों पर रखे हुए हैं। रंगों, पुष्पों, मोतियों एवं रत्नों की रंगोलियाँ यत्र-तत्र बनी हुईं हैं। 



रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित पुष्पदान स्थान-स्थान पर रखे हुए हैं यत्र-तत्र शुद्ध घृत में प्रज्ज्वलित हीरों से जड़े स्वर्ण के दीपक अपना प्रकाश बिखेर रहे हैं और उनकी लौएँ आपके आगमन का समाचार सुनकर झूम-झूमकर नाच रही हैं सभा के स्तंभों पर विविध रंगों से सुंदर चित्रकारी की गई है सभा में ऊपर रंग-बिरंगे गुब्बारे, फूलमालाएँ, दीपदान, घंटे एवं मोतियों की झालर युक्त सुंदर रेशमी परदे लटके हुए हैं।


अब श्रीगणेशजी मुस्कुराते हुए ऋद्धि-सिद्धि के संग सभा मंडप में प्रवेश कर रहे हैं और सुंदर गलीचे पर अपने कदम रख रहे हैं। ऋद्धि एवं सिद्धिजी के चरणों की पाजेबों की रुनझुन से संपूर्ण वातावरण झंकृत हो उठा है। समस्त भक्तवृंद खड़े होकर शंखनाद करते, घंटा, भेरी बजाते, पुष्प वृष्टि करते हुए उनका स्वागत कर रहे हैं।

मैं श्रीगणेश के गले मैं सुंदर पुष्पमालाएँ पहनाता हूँ और उनसे अनुरोध करता हूँ कि इस सुंदर सिंहासन पर विराजमान होइए इस सिंहासन को मैंने अपने ही मन में चंदन की लकड़ी एवं स्वर्ण का प्रयोग करके बनाया है और इसमें सुंदर एवं अमूल्य रंग-बिरंगी मणियाँ जड़ी हैं इसके बैठने के आसन में मैंने अनेक कोमल पत्तियाँ, रेशमी एवं कपास के वस्त्र भरे हैं और तत्पश्चात् इसे सुंदर रेशमी वस्त्र से ढका है, जिससे कि आप इस पर आसीन होते हुए अत्यंत आनंद का अनुभव करें। हे महाभारतलेखक! आइये! अब आप इस सिंहासन पर विराजमान हो जाइएगणेशजी मुस्कुराते हुए सिंहासन पर आसीन हो गए हैं। 

गणेशजीके एक ओर सिद्धिजी हाथों में जल की सुंदर झारी लेकर खड़ीं हैं। दूसरी ओर खड़ी ऋद्धिजी उनपर पंखा झल रही हैं


हे विघ्नेश गणेश! मैं आपके ऊपर पुष्पवृष्टि करता हूँ और आपके चरणों पर गुलाब, कमल, मोगरा, कनेर, हरसिंगार एवं अन्य पुष्पों की पंखुड़ियाँ बिखेरकर नमन करता हूँ। हे लंबोदर! मैं आपके लिए ये सुंदर मंदार के पुष्प, दूर्वा घास एवं शमी के पौधे की पत्तियाँ तोड़कर लाया हूँकृपया इन्हें स्वीकार कीजिए और मुझे अपने चरणों की निर्मल भक्ति प्रदान कीजिएआप ही तो मुझ जैसे दु:खीजनों की प्रार्थना सुनने वाले हैं


Ganesh Manas Puja 18. Ganesha entering in His royal court, His welcome

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