बुधवार, 3 दिसंबर 2014

गणेश मानस पूजा

(३.) पाद्य- 

भगवान् श्रीगणेश अपने चरणकमल एक सुंदर पादपीठिका पर रखे हुए हैं तीन बड़ी थालियाँ गणेश एवं ऋद्धि-सिद्धि माँ के चरणकमल का प्रक्षालन करने के लिए रखी हुईं हैं। हे गजमुख! मैं अपने मानस में इन सुंदर थालियों में गंगाजल भरकर लाया हूँ, जिसमें कमल की मनोहर पंखुड़ियाँ तैर रही हैं इस जल में मैंने अनेक सुगंधित वस्तुएँ मिलायी हैं मैं गणेशजी से अनुरोध करता हूँ कि वे अपने चरण जल से परिपूर्ण स्वर्ण पात्र में रख दें।

मैं गणेशजी के चरण पात्र में रखकर उनका प्रक्षालन कर रहा हूँ ऋषि-मुनि मुझे भगवान् के चरण प्रक्षालन करते देख मंत्रों का पाठ कर रहे हैं आहा! कितने कोमल और गुदगुदे हैं श्रीगणेश के चरणकमल! मैं आपके साथ-साथ ऋद्धि-सिद्धि माँ जो आपके संग कमल सिंहासन पर आसीन हैं, उनके भी चरण धो रहा हूँ, जो मंद-मंद मुस्कान से मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि की वर्षा कर रही हैं और श्रीगणेशजी के प्रसन्न मुख को निहारकर निहाल हो रही हैं आप तीनों के चरण कमलों के सुंदर नखों से प्रकाश फूट-फूटकर निकल रहा है और उनमें धारण की हुईं पाजेबें अत्यंत आकर्षक प्रतीत हो रही हैं

हे गजानन! चरण धोने के पश्चात् मैं एक स्वच्छ और सुगंधित अत्यंत महीन रेशमी वस्त्र से कोमलता से आपके एवं ऋद्धि-सिद्धि माताओं के चरणों को पोंछता हूँ तत्पश्चात् मैं उन चरणों पर दूर्वा घास अर्पित कर उनका पूजन करता हूँ और उन पर अपना शीश रख देता हूँ

कुछ क्षण पश्चात् जब मैं अपना शीश उठाकर आप तीनों की ओर देखता हूँ, तो पाता हूँ कि आप मुझे निहारते हुए अपने सुंदर मुख से मुस्कान की झड़ी लगा रहे हैं मैं आप तीनों को प्रसन्न जान आपकी ओर निहार-निहारकर निहाल हो रहा हूँ आप तीनों ने अपने दाएँ हाथ अभय एवं आशीर्वाद मुद्रा में मेरी ओर उठा लिए हैं, जिनमें से कृपा की किरणें निकलकर मेरे ऊपर बरस रही हैं मैं श्रद्धान्वित होकर पुनः अपना शीश आपके चरणों  में रख देता हूँ, आप तीनों अपने करों से मेरे शीश को धीरे-धीरे सहलाने लगते हैं और मेरे हृदय में धधकती त्रिविध दुखों की समस्त अग्नि को शीतल कर प्रेमामृत एवं शांतिरस का झरना बहाने लगते हैं




Ganesh Manas Puja 3. Washing Ganesha's feet 

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