गणेश मानस पूजा
(१२.) गौरीशंकरपूजन
में सहायता -
हे स्कंदभ्राता गणेशजी! आइए अब गौरीशंकर पूजन के लिए हिमाच्छादित मंदिर या कक्ष में चलें। मंदिर की चोटी पर सुंदर ध्वज लहरा रहा है। सूर्यनारायण भगवान् गंगा के एवं पर्वत के पीछे से निकलते हुए गणेशजी को देख मुस्कुरा रहे हैं।
हे स्कंदभ्राता गणेशजी! आइए अब गौरीशंकर पूजन के लिए हिमाच्छादित मंदिर या कक्ष में चलें। मंदिर की चोटी पर सुंदर ध्वज लहरा रहा है। सूर्यनारायण भगवान् गंगा के एवं पर्वत के पीछे से निकलते हुए गणेशजी को देख मुस्कुरा रहे हैं।
गणेशजी ऋद्धि-सिद्धि के संग स्वयं अपने हाथों से गौरीशंकर
के पूजन हेतु पुष्प, बिल्वपत्र तोड़कर दोने में रख रहे हैं। उनकी
बड़ी-बड़ी आँखें नीचे झुकी हुईं हैं। गणेशजी
पूजन हेतु स्वयं अपने हाथों से एक तागे में फूल पिरो रहे हैं।
स्वर्ण
के धागों से हीरे-मोती जड़कर फूलों का डिजाइन कढ़ा हुआ सुंदर दुपट्टा
उनके
दोनों कंधों पर झूल रहा है।
अब
गणेशजी बिल्वपत्रों पर मोरपंख
की लेखनी और चंदन-रोली की स्याही से ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘सीताराम’ नाम लिख रहे
हैं। ऋद्धिजी डलिया में से उन्हें बिल्वपत्र दे रही
हैं और सिद्धिजी उनसे भगवन्नाम लिखे हुए बिल्वपत्र लेकर पूजन के थाल में रख रही
हैं।
गणेशजी अपने हाथों में फूलों, मालाओं एवं लड्डुओं
का दोना लेकर चल रहे हैं।
मैंने
माँ गौरी एवं पिता शंकरजी के पूजन के लिए सुंदर थाल सजाया है, जिसमें पंचगव्य (गौघृत,
गौदुग्ध, गोमय, मक्खन, दही), गंगाजल, शहद, पान, सुपारी, इलायची, कमलगट्टा, लौंग,
काले तिल, सिंदूर, रोली, चावल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, इत्र, रुई,
कपूर, अबीर, दीपक, चौमुखी दीपक, माचिस, दूर्वा, कुशा,
सरसों, उड़द, गुग्गुल, भोजपत्र, कलावा, शक्कर,
जौ, जनेऊ, शंख, मौली, सात रंगों में रंगे चावल, कौड़ी, सीपी, बताशे, मोरपंख,
हल्दी, आटा, आटे की गोली, पंचरत्न, नारियल, सूखा
नारियल, गुड़, ५ फल, ५ मेवा, ५ मिठाई, कमल-गुलाब
आदि पुष्प, बिल्व-आम-केले
आदि के पत्ते
रखे
हुए हैं। उस पूजन थाल को अपने
हाथों में लिए ऋद्धिजी गणेशजी
के पीछे चल रहीं हैं। सिद्धिजी अपने
हाथों में वीणा लेकर चल रहीं हैं।
ऋद्धि-सिद्धिजी की अनेक सखियाँ सुराही/घड़ा/मटका/कलश, झालर (रंग-बिरंगे पुष्प, पत्ते,
कागज, लाईट, घंटी की बनी हुईं), कंदील, चँवर, भगवान् जी का
छोटा झूला, शय्या, मुकुट, वंशी, कुशा आसन, गीता, रामायण, दुर्गासप्तशती आदि
पुस्तक, भोग लगाने हेतु घंटी, लटकाने वाला घंटा, हाथ में बजाने वाला घंटा,
मंजीरा, ढपली आदि संगीत वाद्य, तुलसी पौधा, पटरा, अरघी,
५ बर्तन, आम की लकड़ी, अभिषेक हेतु पात्र,
विग्रह पोंछने हेतु वस्त्र, लेकर चल रहीं हैं।
गणेशजी माँ पार्वती
एवं पिता शंकर को साष्टांग प्रणाम कर रहे हैं।
पार्वतीजी ने मुस्कुराते हुए उन्हें
अपने हृदय से चिपटा लगा लिया है और उन्हें गोद में बिठाकर उनके शीश पर अपने हाथ
फिरा रही हैं। शंकर भी मुस्कुराते हुए उन्हें
आशीर्वाद दे रहे हैं। ऋद्धि-सिद्धि भी गौरीशंकर को प्रणाम कर रही हैं
और उनका आशीर्वाद ग्रहण कर रही हैं। गणेशजी ऋद्धि-सिद्धि सहित गौरीशंकर की परिक्रमा कर
रहे हैं।
छोटे भाई कार्तिकेयजी गणेशजी और अपनी दोनों भावियों के चरणों में प्रणाम कर रहे हैं और गणेशजी उन्हें उठाकर अपने वक्ष:स्थल से लगा रहे हैं। गणपति अपनी सूंड लंबी कर सरोवर से सुंदर कमल और वृक्षों से अन्य पुष्प तोड़कर माता-पिता के चरणों में चढ़ा रहे हैं और उन पर पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं।
छोटे भाई कार्तिकेयजी गणेशजी और अपनी दोनों भावियों के चरणों में प्रणाम कर रहे हैं और गणेशजी उन्हें उठाकर अपने वक्ष:स्थल से लगा रहे हैं। गणपति अपनी सूंड लंबी कर सरोवर से सुंदर कमल और वृक्षों से अन्य पुष्प तोड़कर माता-पिता के चरणों में चढ़ा रहे हैं और उन पर पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं।
गणेशजी पंचगव्य (गौघृत,
गौदुग्ध, गोमय, मक्खन, दही),
गंगाजल, तेल, शहद से शिवलिंग को स्नान करा रहे हैं, उस पर चंदन से
ॐ और सीताराम लिख रहे हैं तथा नाम
जप करते हुए आकपत्र, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, पुष्प इत्यादि शिवलिंग पर अर्पित कर रहे
हैं। शिवलिंग पर रखे पुष्पों पर ऊपर लटकते ताम्रपात्र से गंगाजल की बूँदें टप-टप टपक
रही हैं।
अब गणपति शिवलिंग को सुंदर वस्त्र पहना रहे हैं। अब गणेशजी शिवलिंग और
माता-पिता के सम्मुख दीपों, नारियल की सुंदर पंक्तियाँ सजा
रहे हैं। गणेशजी
ने
एक सुंदर स्वर्णदीप उनके समक्ष हिमखंड पर रख उसे प्रज्ज्वलित
कर दिया है और अब वे उस बड़े दीप के
चारों ओर पुष्पों, पत्तों, रंगों और तेल, घी के छोटे-छोटे स्वर्ण
और रजत दीपकों से मनोहारी रंगोली बना रहे हैं। दीपकों की नाचती हुईं लौ में गणेशजी की मनोहारी
छवि प्रतिबिंबित हो रही है।
गणेशजी अब अपने
माता-पिता पार्वतीजी और शिवजी के प्रिय भगवान् सीतारामजी की
मूर्ति के समक्ष पुष्पार्पण कर रहे हैं और उनके नाम का संकीर्तन
करते हुए ढोलक बजाते हुए नृत्य
कर रहे हैं। उनके पैरों में पड़ी हुईं पाजेबें रुनझुन की सुंदर ध्वनि कर रही हैं, जो
कि मेरे कानों में गूँज रही हैं और हृदय में आनंद का झरना बहा रही हैं।
गणेशजी के साथ
उनके भाई कार्तिकेय और गण भी झूम-झूमकर ‘ॐ नम: शिवाय’ ‘सीताराम’ का गान करते हुए नृत्य
कर रहे हैं। श्रीगणेश अपने मुख से वंशी में सुर भर रहे हैं। वंशी
का मधुर स्वर वायुमंडल में गूँज रहा है। गौएँ अपने मुख में रखी हुईं हरी पत्तियों को
चबाना भूलकर मंत्रमुग्ध खड़ी हुईं हैं। विस्मित खड़ी ऋद्धि-सिद्धि के नयनों से प्रेम
के अश्रु बह रहे हैं। शिव, पार्वती, कार्तिकेय
एवं ऋद्धि-सिद्धि गणेशजी का पूजन देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं।
शिवजी भी अपना त्रिशूल हाथों में ले और डमरू बजाते हुए राम नाम गान करते हुए और
नेत्रों से प्रेमाश्रु बहाते हुए गणेशजी, कार्तिकेय और गणों के संग नृत्य कर रहे
हैं। गणेशजी पिता को नृत्य करते देखकर झूमते हुए ढोलक
बजा रहे हैं। यह सुंदर दृश्य देखकर पार्वतीजी और ऋद्धि-सिद्धि
रोमांचित हो रही हैं।
मंदिर में ही एक गौशाला है, नंदीप्रिय गणेश गौओं और बछड़ों को सुंदर वस्त्रों से सजा
रहे हैं, उनके गले में पुष्पमाला पहना रहे हैं, स्वर्ण घंटियाँ बाँध रहे हैं और माथे पर तिलक-चावल लगा रहे हैं। वे उन पर पुष्प वर्षा कर रहे
हैं और उनकी आरती उतार रहे हैं। गणेशजी
गौओं और बछड़ों को हरी घास एवं रोटियाँ अपने हाथों से खिलाते हुए उनके ऊपर अपने कोमल हाथ फिरा रहे हैं। वे उन्हें जल पिला रहे हैं और उनके चरणों में नमन कर रहे हैं। गौएँ और बछड़े गणेशजी को सूँघ रहे हैं और नेत्रों से प्रेमाश्रु
बहाते हुए उन्हें चाट रहे हैं।
एक दूसरे का हाथ पकड़े ऋद्धि-सिद्धि मंदिर की सीढ़ियों पर खड़ी हुईं हैं और इस सुंदर झाँकी को मुस्कुराते हुए अपने नयनों से एकटक निहार रही हैं।
Ganesh Manas Puja 12. Worship of Parvati & Shiva by Ganesha
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